Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग- 77( A Lip of Heart-1)

Chapter-23: A Lip of Heart....


दीपिका मैम  और मेरे बीच फेयरवेल  की रात को जो कुछ भी हुआ वो सब सच था,लेकिन मेरे खास दोस्तो मे शुमार वरुण को जैसे यकीन ही नही हो रहा था....

"तू एडा बना रहा है मुझे..."

"अब क्या हुआ "

"मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि तूने दीपिका मैम  और खुद का चैप्टर  खुद से जोड़ लिया है...आइ मीन मुझे तो सब फेंक लग रहा है..."

"दीपिका मैम  अब मेरे संपर्क मे नही है,वरना उसी से पुछवा देता तुझे ..."

मैं और वरुण बात कर ही रहे थे कि निशा की कॉल एक बार म टपक पड़ी और मेरे कॉल रिसीव करते ही वो मुझसे पुछने लगी कि मैं कहाँ हूँ और मैने बोल दिया कि मैं अपने रूम पर हूँ....

"Arman, We have to go somewhere "

"where ? "

"मैं तुमसे MBD रेस्टोरेंट के पास मिलती हूँ..."

"कब..."मैं थोड़ा सा बौखला गया जब निशा ने एम.बी.डी. रेस्टोरेंट के पास मिलने के लिए कहा तो

"अभी,कुछ देर मे..."

"ठीक है,आधे घंटे मे पहुचता हूँ वहाँ,वैसे जाना कहा है..."

"पहले पहुचो तो सही..."

.
मैने कॉल डिसकनेक्ट की और वरुण को एक ज़रूरी काम का बहाना बताकर तैयार होने लगा... मैं भी कितना बड़ा बेवकूफ़ था जो कि उन दोनो से झूठ बोल रहा था जो मेरी रग-रग से वाकिफ़ थे....

"निशा से मिलने जा रहा है ना..."जब तैयार होकर मैं रूम से निकलने वाला था तभी वरुण ने टोका

"तुझे कैसे मालूम चला..."

"तेरे मोबाइल की कॉल हिस्टरी देखकर..."

"तुम दोनो को अब कोई और काम नही बचा क्या..."

"यार अरमान,मेरा भी जुगाड़ जमा ना निशा से...जब से उसे बारिश मे भीगते हुए देखा है,रोम-रोम सिहर उठता है उसके नाम से "अरुण ने लार टपकाते हुए कहा

अभी अरुण ने निशा के प्रति अपने अरमान ज़ाहिर किए थे कि वरुण ने भी अपना मुँह फाडा"मेरा भी जुगाड़ जमा दे, My Best Dosit..."

"अबे तुम दोनो ने सुबह-सुबह ये क्या बक-बक लगा रखी है और निशा मंदिर का कोई प्रसाद है क्या... जो तुम दोनो के साथ बाटू ,उसकी शादी होने वाली है..."

"पहली बात कि... अभी सुबह नही शाम है...और दूसरी बात... तू बोले तो मैं तेरे साथ चलता हूँ..इसी बहाने नागपुर घूम लूँगा... और निशा से पूछ लूंगा कि वो तेरे साथ -साथ मेरे से भी प्यार करेंगी क्या..."अरुण ने खड़े होते हुए कहा ,उसे शायद यकीन था कि मैं उसे हां ही कहूँगा,पर वो ग़लत था और वैसे भी लड़कियो के मामले मे सारी theory ग़लत ही हो जाती है...यदि निशा साथ ना होती या फिर यदि मैं नरक मे भी जा रहा होता तो अरुण को घसीट कर ले जाता....लेकिन उस वक़्त मैने ऐसा नही किया,

"अबे तू कहाँ आएगा हड्डी मे कवाब बनने....मतलब कवाब मे हड्डी बनने..."

.
बहुत मशक्कत करनी पड़ी अरुण और वरुण को समझाने मे और आख़िर कार वो मेरे साथ ना आने के लिए मान गये, लेकिन उनकी एक शर्त थी कि मैं उन दोनो के लिए वापस लौटते वक़्त दारू का एक-एक खंबा लेकर ही आउ....
.

"कितनी देर हुई आए हुए...मैं ज़्यादा लेट तो नही हुआ.."एम.बी.डी. रेस्टोरेंट पहुंचते ही मैने निशा से पूछा ...

"बैठो अरमान..."निशा ने उखड़े हुए अंदाज़ मे जवाब दिया..

"अंकल-आंटी से बहस हुई क्या तुम्हारी "

उसके उखड़े अंदाज़ देख कर मैने सवाल किया.. वैसे, इस सवाल के पीछे मेरा एक और मक़सद ये भी पता करने का था कि कही निशा ने हम दोनो के बारे मे अपने मॉम -डैड को ना बता दिया हो,वरना मेरे लिए बहुत मुश्किले खड़ी होने वाली थी...यदि निशा के माँ-बाप को इस समय जबकि निशा की शादी को कुछ दिन ही बाकी थे,उन्हे ये पता चलता की उनकी गैर मौजूदगी मे मैं उनकी बेटी के साथ रास-लीला रचाता हूँ तो वो शायद मुझे ज़िंदा नही छोड़ेंगे....

"नो, उनसे कोई बहस नही हुई....वो कल डेविड आ रहा है मुझसे मिलने..."एक ग्लास मे पानी गले से नीचे उतारते हुए वो बोली

"अब, ये चूतिया डेविड कौन है...जिसकी वजह से तुम इतनी उदास हो.."

"मेरा होने वाला हस्बैंड "

"ओह तेरी...sorry .."अबकी मैने भी सामने रखे पानी के ग्लास को गले से नीचे उतारा और बोला

."तो इसमे बुराई क्या है, हस्बैंड है तेरा...यहाँ आएगा, प्यार के मीठे दो बोल गुनगुनाएगा ,तेरे साथ चुम्मा चाटी करेगा , फिर यहाँ वहाँ हाथ मार कर तुझे यहाँ से ले जाएगा...."

"मुझे वो पसंद नही...."

"और वो क्यूँ..."

"कार मे चलकर बात करते है ,कहीं चलना है हम दोनो को...."

हम दोनो एम.बी.डी. रेस्टोरेंट से बाहर निकल कर निशा की कार मे हो लिए,...ये पहली बार था जब मैं निशा के साथ अपनी कॉलोनी से बाहर निकला था, यूँ तो नागपुर आए हुए महीनो हो गये थे,लेकिन नागपुर के बारे मे अब भी मैं कुछ नही जानता था,जिसकी एक वजह ये थी कि मैं शहर की भीड़ भाड़ से दूर रहता था और दूसरा कुछ नया जानने की इच्छा महीनो पहले जैसे सीने मे ही दफ़न हो गयी थी...लेकिन आज निशा के साथ होने पर मैं नागपुर को मै पहली बार गौर से देख रहा था....और तभी मुझे बीते दिनो की याद आई जब हम हमेशा यही कहा करते थे कि काश हम नागपुर मे पढ़ते, काश हम नागपुर मे रहते या फिर काश कि नागपुर यहाँ से पल भर की दूरी मे होता....ऐसा कहने की हमारी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक वजह थी और वो वजह थी सस्ते दामो मे अपना जिस्म परोसने वाली गंगा -जमुना वेश्याखाने की देसी और विदेशी लड़किया और कमसिन औरत....

"नागपुर के बारे मे मैने सुन रखा है कि यहाँ रात बिताने के लिए खूबसूरत लड़किया बहुत सस्ते दामो मे मिल जाती है..."खूबसूरत शब्द पर मैने जानबूझ कर ज़्यादा ज़ोर दिया,ताकि निशा जल भुन जाए...और जैसे कि मेरा अंदाज़ा था निशा का रियेक्शन ठीक वैसा ही था...

"क्यूँ....उनके साथ रात बितानी है क्या "वो चिढ़ते हुए बोली...

"कुछ जुगाड़ जमा दो...आज कल रात को नींद नही आती "

"आगे थोड़ी दूर पर एक क्लिनिक है..कहो तो डॉक्टर से कन्सल्ट करके जहर ले लो...उसे पीने के बाद ऐसी नींद आएगी की दोबारा उठोगे ही नहीं ..."निशा फिर चिढ़ने वाले अंदाज़ मे बोली...

"थैंक्स  फॉर दा सजेशन, लेकिन मुझे मेरा ही आइडिया ज़्यादा पसंद है...कुछ जुगाड़ जमा दो..."उसकी तरफ देखते हुए मैने कहा"और हां लड़की मस्त गोरी - चिट्टी विदेशी हो तो और भी ज़्यादा सुकून से नींद आएगी "

"अरमान अब बस भी करो, i have to say something..."

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